ह्रदय रोग – लक्षण कारण और इलाज
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हृदय का स्वस्थ रहना बहुत ही जरूरी माना जाता है। लेकिन, हृदय से जुड़ी बीमारियां खतरनाक हो सकती हैं। हृदय से जुड़ी बीमारियों में हृदय की संरचना (heart structure) औऱ हृदय के फंक्शन को प्रभावित करने वाले कारण शामिल हैं। इनमें अरिथिमिया एरिथमिया (arrhythmias), कोरोनरी धमनी का रोग (coronary artery disease) और दिल के वॉल्व संबंधी दिक्कतें (valve issues) शामिल हैं। इन समस्याओं की सही रोकथाम और इनके सटीक मैनेजमेंट के लिए समय रहते इनके लक्षण, कारणों की जांच करने के बाद सटीक इलाज के तरीके की पहचान करना ज़रूरी है। दिल की बीमारी की सही समय पर पहचान यानी सही जांच (test) करके और समय पर इलाज के जरिए दिल के मरीज के जीवन को बचाया जा सकता है।
ह्रदय रोग के लक्षण क्या हैं ?
दिल की बीमारी के लक्षण इस पर निर्भर करते हैं कि दिल की बीमारी किस प्रकार की है और इसकी गंभीरता क्या है। आमतौर पर दिल की बीमारी के लक्षण इस तरह होते हैं।
- सीने में दर्द या बेचैनी (chest pain or discomfort) – इस सिचुएशन में अक्सर मरीज छाती में दबाव या खिंचाव महसूस करता है। इस दौरान मरीज को छाती में कुछ निचुड़ने या सिकुड़ने की फीलिंग आती है और छाती में भारीपन महसूस होता है।
- सांस लेने में तकलीफ होना (shortness of breath) – मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है, इसके साथ कभी दर्द होता है और कभी ये तकलीफ बिना दर्द के भी हो सकती है।
- मरीज को बहुत थकान और कमजोरी (fatigue) महसूस होने लगती है।
- मरीज के दिल की हार्ट बीट यानी धड़कन अनियमित (palpitation) हो जाती है।
- सूजन (swelling) की स्थिति आना. मरीज के टखनों, पैरों और टांगों में सूजन आ जाती है।
- मरीज को रुक रुक कर या लगातार चक्कर आते हैं (dizziness) और कभी कभी बेहोशी (fainting or light headedness) छा जाती है।
ह्रदय रोग के कारण क्या हैं ?
दिल की बीमारी कई कारणों से हो सकती है। इन कारणों में शामिल हैं –
- एथोरोस्कलेरोसिस (atherosclerosis) यानी कोरोनरी धमनियों में फैट जमा हो जाना– इस में रक्त धमनियों यानी आर्टरीज़ (arteries) में फैट प्लॉक (fatty deposits) जमा होने लगता है। इस फैट को प्लॉक (plaque) भी कहा जाता है। प्लॉक जमा होने से ब्लड सर्कुलेशन में रुकावट आने लगती है।
- हाई ब्लड प्रेशर (High Blood Pressure ) – लगातार हाई बीपी रहने के कारण मरीज की आर्टरीज़ और दिल को नुकसान होने लगता है।
- हाई कोलेस्ट्रॉल (High cholesterol) – शरीर में हाई कोलेस्ट्रॉल जमा होने पर आर्टरीज़ में प्लॉक जमने लगता है जिससे दिल संबंधी परेशानियां बढ़ती हैं।
- धूम्रपान यानी स्मोकिंग (Smoking) – लगातार स्मोकिंग करने से मरीज की ब्लड वैसल्स को नुकसान पहुंचने लगता है और इससे दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।
- डायबिटीज यानी मधुमेह (Diabetes) – डायबिटीज की बीमारी के चलते शरीर में ब्लड वैसल्स को नुकसान होता है और दिल की बीमारी का रिस्क बढ़ जाता है।
- अनुवांशिक कारण (Genetics)– परिवार में अगर ह्रदय रोग का इतिहास है, तो दिल की बीमारी का रिस्क बढ़ जाता है।
- मोटापा (Obesity)– मोटापा कुछ हद तक दिल की बीमारी का कारण माना जाता है क्योंकि ये हाई बीपी और डायबिटीज जैसे रिस्क से जुड़ा होता है।
- सुस्त लाइफस्टाइल (Sedentary Lifestyle) – एक्सरसाइज (exercise) और फिजिकल एक्टिविटी (physical activity) की कमी भी दिल की बीमारी से जुड़े खतरे पैदा कर देती है।
- अनहेल्दी डाइट (Unhealthy Diet) – ट्रांसफैट (trans fat), सैचुरेटेड फैट (saturated fat) और हाई कोलेस्ट्रॉल (high cholestrol) युक्त डाइट लेने से भी दिल की बीमारी का रिस्क पैदा हो सकता है।
ह्रदय रोग की जांच कैसे की जाती है ?
दिल की बीमारी की सटीक जांच के लिए कुछ टेस्ट किए जाते हैं।
- इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम यानी ईसीजी (Electrocardiogram – ECG) – इस टेस्ट में दिल की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को मापा जाता है।
- इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram) – इस टेस्ट में दिल के स्ट्रक्चर की फोटोज ली जाती हैं।
- स्ट्रेस टेस्ट (Stress Test) – इसमें शारीरिक मेहनत के दौरान दिल के फंक्शन की जांच की जाती है।
- कोरोनरी एंजियोग्राफी (Coronary Angiography) – इस टेस्ट में ब्लड वैसल्स में ब्लड के फ्लो को देखा जाता है।
ह्रदय रोग का इलाज रोकथाम कैसे किया जाता है?
दिल की बीमारी का इलाज दिल की मौजूदा सिचुएशन और उसकी गंभीरता के आधार पर अलग अलग हो सकता है। ह्रदय रोग के इलाज के दौरान ये तरीके अपनाए जाते हैं।
- लाइफस्टाइल में बदलाव करके (lifestyle changes) – लाइफस्टाइल में बदलाव के तहत दिल के लिए हेल्दी डाइट (diet) फॉलो करना, नियमित रूप से एक्सराइज (exercise) करना, स्मोकिंग छोड़ना और अल्कोहल का कम सेवन करना शामिल है।
- दवा के जरिए (medications) – दिल की बीमारी के लिए दवा के बारे में संबंधित मेडिकल प्रेक्टिशनर की सलाह ली जाती है। मेडिकल प्रेक्टिशनर का मेन फोकस कोलेस्ट्रॉल को कम करना, हाई बीपी को कंट्रोल करना और ब्लड क्लॉट बनने से रोकना शामिल है।
- मेडिकल प्रोसीजर (medical procedure) – दिल की बीमारी के इलाज के लिए कई तरह के मेडिकल प्रोसीजर मौजूद हैं।
- एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग (Angioplasty and stenting) इस प्रोसेस में बंद और अवरुद्ध ब्लड वैसल्स को खोलने के लिए एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग की मदद ली जाती है।
- कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्टिंग (Coronary artery bypass grafting (CABG) – इस प्रोसेस का मकसद बंद और रुके हुए वैसल्स को ग्राफ्टिंग के जरिए बाईपास करना यानी बाकी वैसल्स से अलग कर देना है।
- इंप्लांट डिवाइसेज (Implantable devices) – इस प्रोसेस में दिल में पेसमेकर (pacemaker) और डिफाईब्रिलेटर (defibbrilators) जैसे उपकरण प्रत्यारोपित यानी इंप्लांट किए जाते हैं।
- सर्जरी (Surgery) – दिल के वॉल्व की मरम्मत (heart vale repair) या उसे बदलने (replacement) जैसे गंभीर मामलों में सर्जरी की जरूरत पड़ती है।
- कार्डिएक रिहेबिलिटेशन (Cardiac rehabilitation) – हार्ट हेल्थ में सुधार के लिए डिजाइन किया गया एक एक्सरसाइज और एजुकेशनल प्रोग्राम।
ह्रदय रोग का समय रहते पता लगाने और इसके सही मैनेजमेंट के लिए नियमित टेस्ट और सटीक डायग्नोस जरूरी हैं। दिल की हेल्थ को बेहतर तरीके से समझने के लिए डॉ. लाल पैथलेब्स के साथ हार्ट स्क्रीन टेस्ट बुक करें। ध्यान रहे कि किसी भी टेस्ट से पहले डॉक्टर से परामर्श लेना जरूरी है।
FAQ
ह्रदय रोग क्या है और इसके लक्षण क्या हैं?
दिल की बीमारी में दिल की संरचना और इसके कामकाज को प्रभावित करने वाली सिचुएशन पैदा हो जाती है। सीने में दर्द, कमजोरी और थकान, सांस लेने में तकलीफ, घबराहट होना, चक्कर आना और पैरों में सूजन इसके लक्षण हैं।
ह्रदय रोग का कारण क्या है और इसका इलाज कैसे होता है?
हाई कोलेस्ट्रॉल (high cholestrol), हाई बीपी यानी हाइपरटेंशन (hypertension), स्मोकिंग (smoking), डायबिटीज (diabetes) और आनुवांशिक इतिहास (genetics) दिल की बीमारी के मुख्य कारण हैं। लाइफस्टाइल में बदलाव करके, दवाओं के जरिए और मेडिकल प्रोसीजर के जरिए इसका इलाज किया जा सकता है।
ह्रदय रोग के इलाज को क्या कहा जाता है?
कोरोनरी आर्टरी बाइपास ग्राफ्टिंग (Coronary Artery Bypass Grafting (CABG) के जरिए दिल की बीमारी का इलाज जा सकता है। इस प्रोसीजर में दिल में ब्लड के सर्कुलेशन और फ्लो को सही करने के लिए बंद और रुकी हुई रक्त धमनियों यानी ब्लड वैसल्स को बाइपास कर दिया जाता है।