Dengue Fever (डेंगू बुखार) – कारण, लक्षण और इलाज
डेंगू एक ऐसी बीमारी है जिसकी जानकारी बहुत ज़रूरी है| यह बारिश के मौसम में होने वाली आम बीमारी है | अक्सर लोग डेंगू को साधारण बुखार समझकर कम ध्यान देते हैं| इस वजह से कईं बार इलाज देर से होने के कारण मरीज़ के लिए दिक्कतें बढ़ जाती हैं| इसलिए यह ज़रूरी है कि सतर्क रहें और डेंगू से जुड़ी जानकारी रखें। ज़रुरत आने पर टेस्ट करायें और डॉक्टर को दिखाएं।
डेंगू क्या है? (What is Dengue?)
- डेंगू एडीज के संक्रमित (dengue infected) मच्छर द्वारा फैलाने वाली बीमारी है|
- डेंगू फैलाने वाले मच्छर साफ पानी में पनपते हैं और ये मच्छर रात की बजाय दिन में ज्यादा काटते हैं|
- डेंगू का वायरस पूरे शरीर में बुखार (fever), सिरदर्द (headache), चकत्ते (rashes) और दर्द (pain) पैदा कर सकता है|
- क्यूंकि डेंगू में बुखार के साथ–साथ हाथ पैरों में बहुत दर्द होता है, इसलिए इसे ब्रेक–बोन फीवर (break-bone fever) भी कहा जाता है|
- डेंगू बुखार के अधिकतर मामले हल्के होते हैं और लगभग एक सप्ताह के बाद अपने आप चले जाते हैं|
- डेंगू में गंभीर स्थिति में प्लाज्मा लीकेज (plasma leakage) हो सकता है|
डेंगू का क्या कारण है? (What Causes Dengue?)
- डेंगू का वायरस (virus) डेंगू बुखार का कारण बनता है| ये वायरस संक्रमित मादा मच्छर (dengue infected mosquito) एडीज की दो प्रजातियों के काटने से फैलता है – एडीज एजिप्टी (Aedes aegypti) और एडीज एल्बोपिक्टस (Aedes albopictus)|
- डेंगू फैलाने वाली मादा मच्छर एडीज (Aedes) जब किसी डेंगू से संक्रमित इंसान (dengue infected human) को काटती है, तो वो इस वायरस की वाहक (carrier) बन जाती है| फिर यह मच्छर जब किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है, तो वह व्यक्ति इस वायरस से संक्रमित हो जाता है| इस तरह डेंगू का संक्रमण बढ़ जाता है|
- वायरस मच्छर के शरीर में प्रवेश करता है और इसके मध्यगुटिका (middle pharynx) में वृद्धि करता है| इसके बाद अन्य ऊतकों (tissues) में, साथ ही थूकने वाले ग्रंथियों (spitting glands) में भी फैल जाता है| इस वजह से गले में दर्द और निगलने में दिक्कत आती है.
- मेडिकल की भाषा में बात करें तो डेंगू का वायरस फ्लेविवायरस जीनस का हिस्सा है, जिसके चार अलग अलग सीरोटाइप होते हैं| ये चार सीरोटाइप हैं – DENV-1, DENV-2, DENV-3 और DENV-4|
- कोई व्यक्ति जब किसी एक सीरोटाइप से संक्रमित होता है तो उसके शरीर में उस खास सीरोटाइप के खिलाफ आजीवन सुरक्षा मिलती है| लेकिन मरीज को दूसरे सीरोटाइप से हमेशा प्रतिरक्षा नहीं मिल सकती है| ऐसे में एक व्यक्ति डेंगू के चार अलग अलग सीरोटाइप के साथ अलग अलग इंफ्केशन से पीड़ित हो सकता है|
डेंगू के रिस्क फैक्टर क्या है? (What are the risk factors of dengue?)
ऐसे कई कारण हैं जो हल्के बुखार से गंभीर डेंगू के विकसित होने के रिस्क बढ़ा सकते हैं| ये रिस्क हैं–
- मच्छरों के संपर्क में आना (Mosquito Exposure): ऐसे क्षेत्र, जहां पानी भरा रहता हो और ज्यादा मच्छर पनपते हों – ऐसी जगह पर रहना भी डेंगू का रिस्क बढ़ाता है|
- पहले कभी डेंगू का मरीज होना (Previous Dengue Infection): डेंगू का रिस्क उन मरीज़ों पर भी रहता है जो पहले कभी डेंगू से संक्रमित हो चुके हैं| उनका फिर किसी नए सीरोटाइप से संक्रमित होना (infection with a different dengue virus serotype) डेंगू का रिस्क फैक्टर (risk factor) बड़ा देता है|
- संवेदनशील स्वास्थ्य स्थितियां (Underlying Health Conditions): डायबिटीज और दिल संबंधी बीमारियों से पीड़ित लोगों पर डेंगू का रिस्क ज़्यादा बन सकता है|
- प्रगनेंसी (Pregnancy): गर्भवती महिलाओं को समय से पहले डिलीवरी जैसे जोखिम का खतरा हो सकता है|
डेंगू फीवर के लक्षण क्या हैं? (What are the symptoms of dengue fever?)
संक्रमित मच्छर के काटने के बाद डेंगू फीवर के लक्षण आमतौर पर 4 से 10 दिन के अंतराल पर दिखने लगते हैं| अलग–अलग मरीजों में इन लक्षणों की गंभीरता अलग–अलग हो सकती है| ये लक्षण इस प्रकार हैं|
- तेज बुखार (high fever) – मरीज को तेज बुखार आता है जो 104 डिग्री तक पहुंच सकता है|
- तेज सिरदर्द (severe headache) – मरीज को तेज सिरदर्द होता है जो अधिकतर आंखों के आस पास होता है|
- आंखों के पीछे दर्द होना (pain behind the eyes) – मरीज की आंखों के पीछे दर्द होना डेंगू के लक्षणों में प्रमुख है|
- जोड़ों और मांसपेशियों का दर्द (joint and muscle pain) – मांसपेशियों, जोड़ों और हड्डियों में दर्द होता है और इसलिए इसे ब्रेक–बोन फीवर (break-bone fever) भी कहा जाता है|
- जी मचलना और उल्टी (nausea and vomiting) – गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण जैसे मतली, उल्टी और पेट में दर्द होना|
- स्किन रेशेज (skin rashes) – बुखार होने के कुछ दिन बाद त्वचा पर रेशेज दिखने लगते हैं|
- हल्का रक्तस्राव (mild bleeding) – मसूडों और नाक से हल्की ब्लीडिंग होना, जल्द चोट लगना|
डेंगू के गंभीर मामलों में डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS) या डेंगू हाई फीवर (DHF) हो सकता है| दोनों ही कंडीशन में स्थिति जानलेवा साबित हो सकती है और मरीज को इमरजेंसी इलाज और देखभाल की जरूरत होती है| गंभीर डेंगू के लक्षण इस प्रकार हैं|
- थकान (Fatigue)
- बैचेनी (Restlessness)
- पेट में तेज दर्द होना (Severe abdominal pain)
- लगातार उल्टी और मतली महसूस होना (Persistent vomiting)
- सांसें तेज चलना (Rapid breathing)
- मसूड़ों से खून निकलना (Bleeding gums)
- जी मचलना और मल में खून आना (Blood in vomit or stool)
- पीली, ठंडी और चिपचिपी त्वचा (Pale, cold, or clammy skin
डेंगू फीवर की पहचान कैसे करें? (How is dengue fever diagnosed?)
डेंगू बुखार की जांच के लिए क्लीनिकल जांच (clinical evaluation) और लेबोरेटरी टेस्ट (laboratory tests) शामिल हैं|
1. क्लिनिकल इवेलुएशन (Clinical evaluation)
इस जांच में हेल्थ एक्सपर्ट मरीज के लक्षणों, हाल ही में की गई यात्रा, डेंगू का इतिहास और मच्छर काटने के रिस्क का इवेलुएशन यानी आकलन करते हैं| तेज बुखार, सिर में तेज दर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और त्वचा पर दानों के चलते डेंगू का संदेह पैदा होता है|
2. लेबोरेटरी टेस्ट (Laboratory tests)
इस जांच में डेंगू वायरस या शरीर में एंडीबॉडी (antibody) की मौजूदगी के लिए ब्लड टेस्ट (blood test) किया जाता है| इसमें दो टेस्ट शामिल हैं –
- PCR Polymerase Chain Reaction (पॉलिमरेज चेन रिएक्शन): ये जांच आमतौर पर इंफेक्शन के शुरूआती दौर में ब्लड में वायरस के जेनेटिक मेटिरियरल का पता लगाने के लिए की जाती है|
- ELISA Enzyme-Linked Immunosorbent Assay (एलिसा एंजाइम– लिंक्ड इम्यूनोसॉर्बेट ऐसे): ये टेस्ट वायरस से बचाने वाले इम्यून सिस्टम (immune system) द्वारा बनाई जाने वाली एंटीबॉडी यानी इम्यूनोग्लोबुलिन एम (Immunoglobulin M) और इम्यूनोग्लोबुलिन जी (Immunoglobulin G) का पता लगाता है| ये टेस्ट वायरस के संक्रमण के बाद के चरण में इस्तेमाल होता है|
डेंगू का इलाज कैसे होता है? (How is Dengue Fever Treated?)
डेंगू का इलाज करने के लिए अपने डॉक्टर से सलाह लें| डेंगू के इलाज के दौरान बुखार की जटिलताओं को रोकने और डेंगू के लक्षणों से आराम दिलाने पर फोकस किया जाता है| डेंगू के इलाज के विभिन्न उपचार विधियों में शामिल हैं:
- हाइड्रेशन (Hydration): डिहाइड्रेशन, यानी शरीर में पानी की कमी को रोकने के लिए पानी पीना चाहिए| इसके अलावा ओरल रीराइड्रेशन (oral rehydration) यानी मुंह के जरिए पुनर्जलीकरण करना चाहिए और मरीज को सूप (soup) पिलाना चाहिए|
- दर्द और बुखार पर काबू (pain and Fever): हेल्थ केयर प्रोफेशनल (health care professional) या डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाओं और निर्देशों का पालन करना चाहिए| खुद से दवा खाने से बचना चाहिए|
- आराम (Rest): जल्द रिकवरी के लिए आराम करना चाहिए| फिजिकल एक्टिविटी कम करें और पर्याप्त नींद लें|
- मॉनिटरिंग (Monitoring): मरीज के लक्षणों पर बारीकी से नजर रखनी चाहिए| स्थिति गंभीर होने पर अस्पताल में भर्ती करवाएं| इसके साथ–साथ IV (intravenous fluids) तरल पदार्थ देते रहें और देखभाल जारी रखें|
डेंगू से बचाव कैसे करें? (How to Prevent Dengue?)
डेंगू से बचाव करने के लिए मच्छरो की तादाद पर कंट्रोल करने की जरूरत है| डेंगू के जोखिम कम करने के लिए कुछ तरीके यहां हैं|
- ठहरे हुए पानी को हटा दें| ऐसी जगहों पर मच्छर पनपते हैं, जैसे गमले, फूलों के बर्तन, नालियां, कूलर आदि|
- जहां ठहरा पानी हटाया नहीं जा सकता, वहां लार्विसाइड्स (larvicides) और कीटनाशन (insecticides) का प्रयोग करें|
- परी बाजू के कपड़े, पेंट और मौजे पहनें| इससे त्वचा मच्छरों के संपर्क में कम आ पाएगी|
- खुली स्किन और कपड़ों पर मच्छर भगाने वाली क्रीम या लोशन लगाएं|
- जहां मच्छर ज्यादा हों, वहां सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें|
- घर के दरवाजों और खिड़कियों पर जाली लगाएं ताकि मच्छर प्रवेश ना कर पाएं|
- डेंगू के कहर वाले किसी भी इलाके में यात्रा करते समय एयर कंडीशनिंग और जाली वाली खिड़कियों वाले कमरे को चुनें|
डेंगू के मामलों की रोकथाम के लिए इसके लक्षणों को पहचानना और बचाव करना बहुत महत्वपूर्ण है| डेंगू की जल्द पहचान और सटीक इलाज के लिए समय पर डेंगू की जांच और उचित देखभाल के लिए यहाँ टेस्ट बुक करें|
FAQs
1. डेंगू कितने समय तक रहता है ?
आमतौर पर डेंगू 2 से 7 दिन तक रहता है और दो सप्ताह के अंतराल में ठीक हो जाता है| डेंगू के गंभीर मामलों में अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता पड़ती है|
2. डेंगू के वॉर्निंग साइन (चेतावनी संकेत) क्या हैं?
डेंगू के चेतावनी संकेतों में तेज बुखार, सिर में तेज दर्द, आंखों के पीछे दर्द, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, उलटी और मतली, त्वचा पर रेशेज और ब्लीडिंग यानी रक्तस्राव शामिल है|