क्या है अस्थमा, कारण लक्षण और मैनेजमेंट
अस्थमा (asthma) फेफड़ों (lungs) से जुड़ी धीरे धीरे विकसित होने वाली एक लंबी बीमारी है। इस बीमारी को दमा या ब्रोन्काइटिस (bronchitis) भी कहा जाता है. ग्लोबल अस्थमा की रिपोर्ट कहती है कि भारत में करीब 35 मिलियन लोग अस्थमा से प्रभावित हैं। देखा जाए तो भारत की करीब तीन फीसदी आबादी अस्थमा के किसी ना किसी रूप से प्रभावित है। अस्थमा कई कारणों से ट्रिगर होता है अगर समय रहते इसकी पहचान और इलाज न किया जाए तो ये बीमारी कई घातक बीमारियों को जन्म दे सकती है. चलिए इस लेख में जानते हैं कि अस्थमा क्या है. साथ ही जानेंगे इसके कारण, लक्षण, जांच और इलाज के बारे में।
क्या है अस्थमा ?
अस्थमा दरअसल एक लंबी मेडिकल कंडीशन है जो सीधे तौर पर फेफड़ों को प्रभावित करती है। इसके चलते मरीज के फेफड़ों के वायुमार्ग यानी फेफड़ों की नलियां अवरुद्ध हो जाती हैं जिससे सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया में रुकावट आती है अस्थमा के दौरान सांस लेने की नली में सूजन आ जाती है और बहुत सारा बलगम जम जाता है जिससे मरीज सांस लेने में दिक्कत महसूस करने लगता है। देखा जाए तो अस्थमा की स्थिति किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है लेकिन आमतौर पर ये बीमारी बचपन से ही शुरु हो जाती है. हालांकि अस्थमा का कोई प्रभावी और स्थायी इलाज नहीं है लेकिन इसे सटीक तरीके से मैनेज करके काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। कुछ खास वजहें अस्थमा के दौरे को ट्रिगर करती हैं यानी अस्थमा के दौरे के लिए वजह बनती हैं. कई बार अस्थमा के दौरे अचानक आते हैं और गंभीर साबित होते हैं। इस दौरान मरीज के शरीर में बीमारी के लक्षण काफी खराब दिखते हैं और स्थिति गंभीर हो जाती है।
अस्थमा के लक्षण क्या हैं?
अस्थमा के लक्षण किसी भी मरीज की स्थिति और कारणों के अनुसार अलग अलग हो सकते हैं. इसके सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं।
1. लगातार खांसी – मरीज को लगातार खांसी आती रहती है. मरीज रात और खासतौर पर सुबह के समय ज्यादा खांसता है. इस वजह से उसकी नींद तक खराब हो जाती है।
2. सीने में घरघराहट की आवाज आना – मरीज के सीने में घरघराहट की आवाज आती है। खासतौर पर सांस लेते समय और छोड़ते समय सीटी या फुसफुसाहट की आवाज आती है. ये फेफड़ों की नलियों के संकुचित होने से होता है।
3. छाती में जकड़न महसूस होना – मरीज की छाती में दबाव और जकड़न महसूस होती है. मरीज को ऐसा लगता है जैसे छाती पर कसाव बढ़ रहा है।
4. सांस लेने में तकलीफ होना – मरीज जरा सा काम करने पर भी थक जाता है. उसे सांस लेने में परेशानी होने लगती है. खासतौर पर सांस लेने के दौरान उसे ज्यादा दम लगाना पड़ता है।
अस्थमा के कारण क्या हैं ?
अस्थमा के कई कारण हो सकते हैं. इसके लिए किसी एक बैक्टीरिया या कारण को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। अस्थमा के विभिन्न कारण इस प्रकार हैं।
1. वंशानुगत कारण – अगर परिवार में किसी को अस्थमा है तो दूसरे सदस्य को अस्थमा होने के चांस बढ़ जाते हैं।
2. एलर्जी – एग्जिमा या एलर्जिक राइनाटिस जैसी एलर्जी से परेशान लोग अस्थमा का जल्दी शिकार बनते हैं।
3. लाइफस्टाइल संबंधी कारण – स्मोकिंग करने वाले लोग और तंबाकू के धुएं के संपर्क में रहने वाले लोग अस्थमा का शिकार बनते हैं। दरअसल तंबाकू फेफड़ों को बुरी तरह प्रभावित करता है और इससे अस्थमा का रिस्क बढ़ जाता है।
4. प्रदूषण – धूल, धुंआ, जलने के कण और हवा में तैरते महीन कण भी अस्थमा का एक बड़ा कारण बन सकते हैं. जो लोग ज्यादा वायु प्रदूषण के बीच रहते हैं, वो जल्दी अस्थमा की चपेट में आते हैं।
5. प्रीमैच्योर बर्थ – समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में अस्थमा होने के रिस्क ज्यादा होते हैं क्योंकि उनके फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं हो पाते हैं।
6. मोटापा – मोटापा भी अस्थमा का एक कारण है. जब शरीर का वजन ज्यादा हो जाता है तो फेफडों और उसके वायुमार्ग पर ज्यादा दबाव पड़ता है और इससे अस्थमा के रिस्क बढ़ जाते हैं।
अस्थमा के दौरा किन कारणों से पड़ता है?
अस्थमा का दौरा ट्रिगर करने वाले बहुत सारे कारण हैं. ये इस प्रकार हैं।
1. एलर्जी – पराग, धूल के कण, फफूंद, पालतू जानवरों की रूसी, और एलर्जी करने वाले दूसरे तत्व।
2. रेस्पिरेटरी इंफेक्शन – सर्दी जुकाम और फ्लू से होने वाला संक्रमण।
3. फिजिकल एक्सरसाइज – प्रतिकूल मौसम में ज्यादा व्यायाम करने से और ज्यादा थकाने वाली एक्सरसजाइज से
4. ठंडी हवा – ठंडी हवा में फेफडों के वायुमार्ग में सूजन आ जाती है।
5. एयर पॉल्यूशन – हवा में तैरते बारीक कण जैसे धुंआ, धूल।
6. कुछ खास दवाएं.
7. तनाव या तनाव से भरे माहौल में समय बिताना।
8. फूड्स और ड्रिंक्स में मिलाए जाने वाले कुछ प्रिजरवेटिव्स।
अस्थमा को मैनेज कैसे किया जा सकता है?
हालांकि अस्थमा का कोई इलाज नहीं है लेकिन लाइफस्टाइल में बदलाव और सटीक मैनेजमेंट यानी प्रबंधन के जरिए इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इसके मैनेजमेंट में हेल्थकेयर प्रोवाइडर से सेवा लेना, आस पास के वातावरण को साफ रखना, अस्थमा ट्रिगर करने वाली चीजों से दूरी बनाए रखना, हेल्दी डाइट अपनाना और व्यायाम के साथ साथ वजन को कंट्रोल करना शामिल है। रेस्पिरेटरी हेल्थ यानी सांस के स्वास्थ्य को सही बनाए रखने के लिए एक अच्छे और सटीक मेडिकल प्लान की जरूरत होती है। अगर किसी को अस्थमा के लक्षण दिख रहे हैं तो डॉ. लाल पैथलैब्स में टेस्ट बुक करें। इससे पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।
FAQ
1. क्या अस्थमा का मरीज सामान्य जीवन जी सकता है?
हां, उचित मैनेजमेंट और देखभाल के साथ अस्थमा का मरीज सामान्य और सक्रिय जीवन जी सकता है। अस्थमा ट्रिगर करने वाले कारणों से बचने और इसके लक्षणों को मैनेज करने से मरीज को लाभ मिलता है। इसके साथ साथ सही लाइफस्टाइल, डाइट, एक्सरसाइज भी मदद करती है
2. अस्थमा की पहचान कैसे की जाती है?
मरीज की मेडिकल हिस्ट्री, फिजिकल टेस्ट और फेफडों के काम करने की क्षमता को चैक करके अस्थमा की जांच की जाती है। फेफडों के काम करने की क्षमता को स्पिरोमेट्री टेस्ट के जरिए आंका जाता है, ये दरअसल फेफड़ों के काम करने का तरीका मापने का एक आसान टेस्ट है। इससे पता चलता है कि मरीज सांस लेने के दौरान फेफड़ों में कितनी हवा भर रहा है और सांस छोड़ने के दौरान कितनी हवा बाहर निकाल रहा है. इस टेस्ट को पल्मोनरी फ़ंक्शन टेस्ट (पीएफ़टी) या लंग फ़ंक्शन टेस्ट भी कहा जाता है।